भारत में सामाजिक पर्यावरण सम्बन्धी विभिन्न आन्दोलन एवं मूल्यांकन
भारत में पर्यावरणीय आंदोलन
विश्व में विकास तेजी के साथ अपनी चरम सीमा तक बढ़ता जा रहा है। इन होने वाले विकासो के साथ पर्यावरण पर आधारित विभिन्न संघर्ष भी बढ़ते ही जा रहे है। विकास दर को बढ़ाने के लिये किये जाने वाले प्रयासों में मनुष्य यह भूल ही गया की वह विकास के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन को भी खतरे में डालता जा रहा है। लगातार पेड़ों की कटाई तथा इनकी घटती संख्या हमारे तथा पर्यावरण के लिये एक चेतावनी के रूप में सामने खड़ा है। समय समय पर इन वृक्षों को कटने से बचाने के लिये लोगो के द्वारा विभिन्न पर्यावरण सम्बन्धी सामाजिक आन्दोलन को किया गया जो निम्न है।
भारत में पर्यावरणीय आंदोलन
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चिपको आन्दोलन
यह आंदोलन पर्यावरण रक्षा के लिये भारत के उत्तराखंड राज्य में किसानो द्वारा वृक्षो की कटाई के विरोध में किया गया था। इस आंदोलन का मुख्य बिंदु लोगो द्वारा वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की की कटाई का विरोध था इस विरोध में कई लोगो को अपनी जान भी गवानी पड़ी
- समय-1972
- स्थान-उत्तराखंड(चमोली जिले मे गोपेश्वर स्थान पर)
- नेता-सुन्दर लाल बहुगुणा तथा चण्डी प्रसाद भट्ट के नेतृत्त्व द्वारा
साइलेंट घाटी आंदोलन
साइलेंट घाटी केरल राज्य में पायी जाती है जिसका विस्तार 89 वर्ग किलोमीटर है यह अपनी जैव विविधता के लिए मशहूर है। 200 मेगावाट बिजली निर्माण हेतु 1980 में केरल में कुन्तीपूझ नदी पर परयोजना का निर्माण किया जाना था। इस परियोजना को लेकर केरल सरकार पूर्णरूप से इच्छुक थी लेकिन वैज्ञानिक और पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा पर्यावरण को लेकर चिंता व्यक्त की गयी।इन चिंताओं में इस क्षेत्र के कई विशेष फूलों तथ पौधों की प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा था।
अप्पिको आन्दोलन
- समय-1993
- स्थान-कर्नाटक मे
- नेतृत्त्व-पाण्डुरंग हेगड़े के द्वारा
- कारण-वनरोपण तथा वन संरक्षण के लिये
जंगल बचाओ आंदोलन
सर्वप्रथम इस आंदोलन की शुरुआत बिहार राज्य से हुयी जो बाद में धीरे-धीरे झारखण्ड और उड़ीशा तक पहुँच गया। सरकार द्वारा 1980 में बिहार के जंगलों को मूल्यवान सागौन के पेड़ों के जंगल में बदलने की योजना पेश की। जिसके विरोध में बिहार के आदिवासी कबीले के लोगों ने एक जुट होकर आंदोलन चलाया।
विश्नोई आंदोलन
इस आंदोलन की शुरुआत 1700 ईस्वी में ऋषि सोमजी जी द्वारा वनो की कटाई के खिलाफ किया गया था। उसके बाद इस आंदोलन को अमृता देवी विश्नोई ने आगे बढ़ाया। इस विरोध में 363 लोग मारे गये थे। इस घटना की जानकारी उस क्षेत्र के राजा को होने पर वह उस गावं गये और लोगो से माफ़ी माँगते हुए उस क्षेत्र को संरक्षित घोसित कर दिया।
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नर्मदा बचाओ आन्दोलन
- समय-1985
- नेतृत्व-मेघा पाटेकर तथा अरुंधति राय बाबा आम्टे के द्वारा
- कारण -नर्मदा नदी की जैव विविधता को बचाने हेतु
टिहरी बांध विरोध आंदोलन
टिहरी बांध का निर्माण उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में भागीरथी और भिलंगना नदी पर दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों के लोगो के लिए बिजली तथा पेय जल सुविधा के लिए 1972 में किया गयाथा।
इस परियोजना का विरोध सुन्दर लाल बहुगुणा तथा अनेक पर्यवरणादियों के दवरा किया गया जिनका मानना था या बांध टिहरी कस्बे और उसके आस पास के गावों को आंशिक रूप से जलम न कर देगा जिससे 85600 लोग विस्थापित हो जायेगे।
- एम एस स्वामी नाथन-हरित क्रांति के जनक(भारत में)
- डॉ नार्मन वोरलॉग-हरित क्रान्ति के जनक(विश्व मे)
- वंगारी मथाई-ग्रीन वेल्ट मूवमेंट का नेतृत्व(इस सम्बन्ध में इनको सन 2004 मे नोबल पुरूस्कार मिला)
- डॉ सलीमअली-प्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक
- लिखित किताब-बुक ऑफ़ इण्डियन बर्ड्स
- विशेष-इस सम्बन्ध मे जम्मू कश्मीर मे इनके नाम पर राष्ट्रीय उद्यान भारत सरकार के द्वारा बनाया गया
- ए जी टॉन्सले-सर्व प्रथम पारिस्थितिकी तंत्र का प्रयोग किया 1935 मे
- सुनील नारायण-पर्यावरण विद
प्रश्न1-चिपको आन्दोलन किस स्थान पर हुआ?
उत्त्तर-उत्तराखंड के चमोली जिले मे गोपेश्वर स्थान पर
उत्तर-सुन्दर लाल बहुगुणा तथा चण्डी प्रसाद भट्ट के नेतृत्त्व द्वारा
उत्तर-कर्नाटक मे 1993
उत्तर-नर्मदा नदी की जैव विविधता को बचाने हेतु
उत्तर-एम एस स्वामी नाथन
उत्तर-डॉ नार्मन वोरलॉग
उत्तर-वंगारी मथाई को सन 2004 मे
उत्तर-डॉ सलीम अली
उत्तर-बुक ऑफ़ इण्डियन बर्ड्स
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